जूते की महिमा

जूते की महिमा

यूँ तो जूता पैरों का परिधान है मगर इंसान के हाथों में पत्थर के बाद शायद ये पहला हथियार रहा होगा.

इसीलिए जब वह ग़ुस्से की अभिव्यक्ति करता है तो उसे जूता याद आता है.

प्रगति के साथ हथियार नए आ गए, फिर भी जूते का यह रुतबा न क्लाशनिकोव छीन सका और ना कोई बम-पिस्टल ऐसा कर सका. गाँव-देहात में जब कोई पंचायत जुड़ती है तो लोग अपनी औकात को नापने के लिए जूते का सहारा लेते हैं. अपने विरोधी को हैसियत को ये कहकर छोटा किया जाता है कि हम उसे जूते की नोंक पर रखते हैं या ये तो मेरे जूते बराबर भी नहीं हैं.

इंसान के दिल में जब किसी के प्रति नफ़रत होती है तो जूता उसके भावों को अभिव्यक्त करने में मदद करता है. इंसान कहने लगता है -"मैं उसके साथ जूते से पेश आऊंगा."

यानी इंसान के ज़हन में किसी को आँकने का पैमाना जूता हो गया.

जूता धमकी में भी सिरमौर है. लोग किसी के प्रति अपनी नाराज़गी व्यक्त करने के लिए भी जूते की मदद लेते हैं. कहेंगे- "मैं उसे भरी पंचायत में जूते से ज़लील करूँगा."

जूते और इंसान का रिश्ता शायद एक अरसे से रहा है. इसिलए जूते ने हमारे समाज में एक मुहावरे का रूप ले लिया और जूता गाहे-ब-गाहे लोक शब्दावली में ऐसे उतरा कि वो हालात बयाँ करने का सटीक ज़रिया बन गया. किसी की परेशानी को बयान करने लिए के ये कहना काफ़ी होता है कि अपने काम के लिए घूमते-घूमते उसकी जूतियाँ घिस गईं.

पर हाल के वर्षों में जूता हमारे राजनीतिक जीवन और सियासत की सभाओ में अपनी हाजिरी दर्ज करने में कामयाब हो गया है. हाल के दिनों में जूता कई बार सियासी जलसों में जम कर उछला. पत्रकार भी अपनी खबरों में लिखने लगे कि फलाँ दल के समारोह बैठक में जूतमपैजार हो गई. फिर इससे काम नहीं चला तो वे जूता चलाने भी लगे. एक पत्रकार साहब ने इराक़ में जूता चलाया तो हीरो बन गया और एक ने दिल्ली में चलाया तो नौकरी से हाथ धो बैठा.

जूता हमारी बोलचाल से गली बनाता हुआ बॉलीवुड तक गया. तभी ये नगमा बना, 'मेरा जूता है जापानी...'

जॉर्ज बुश पर जैसे ही जूता उछला, तो जूते को एक बड़ा मंच मिल गया. लेकिन आज जूता हालत से लड़ते-लड़ते शायद ख़ुद कमज़ोर हो गया है.

मैंने चमड़े का जूता बनाने वाले एक कारीगर से जब जूते के कमज़ोर होने जिक्र किया तो वो ख़ुद जूते का दर्द बयाँ करने लगा, "जानवर को भी आज कल खाने को क्या मिलता है, उसकी ही चमड़ी से तो ये जूता बना है. कमज़ोर तो होगा ही."

लगता है कि इस कमज़ोरी का फ़ायदा उठाकर चप्पल ने जूते की जगह लेने की कोशिश शुरु कर दी है. तभी तो हाल ही में एक नेता पर जूते की जगह चप्पल उछाली गई.

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